


राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर का पॉजिटिव असर भारत पर दिखने लगा है। उन्होंने चीन पर 245% टैरिफ लगाया है। इसका असर यह हुआ कि पहले चीन की जो कंपनियां भारत में अपने बिजनेस में 50% से अधिक हिस्सेदारी लोकल पार्टनर्स को देने को तैयार नहीं थीं, अब वे उसके लिए राजी हो रही हैं। यानी उन बिजनेस के मालिक भारतीय होंगे और छोटी हिस्सेदारी चीनी कंपनियों की होगी।
टेक्नॉलजी का अभाव
अभी जिन कंपनियों ने इसमें दिलचस्पी दिखाई है, उनमें शंघाई हाइली ग्रुप और हायर शामिल हैं। शंघाई हाइली ग्रुप तो अपने भारतीय पार्टनर्स के साथ टेक्नोलॉजी तक साझा करने को तैयार है। दरअसल, भारतीय कंपनियां अगर मैन्युफैक्चरिंग में दुनिया में मजबूत जगह नहीं बना पाई हैं तो उसकी एक वजह बेहतरीन टेक्नॉलजी का अभाव भी है।
क्यों बदला मन
ऐसा क्या हुआ कि लोकल पार्टनर्स को पहले जहां चीन की कंपनियां मालिकाना हक देने को तैयार नहीं थीं, अब उसकी पहल कर रही हैं? इसकी दो वजहें हैं। पहली, अमेरिका के भारी-भरकम टैरिफ के बाद उनके लिए चीन से वहां सामान भेजना मुश्किल हो गया है। चीन पर 245% टैरिफ के मुकाबले भारत पर अमेरिका ने 26% का आयात शुल्क लगाया है, जो काफी कम है। यानी भारत-चीन की कंपनियों की हिस्सेदारी वाले बिजनेस के लिए यहां से अमेरिका माल भेजना फायदे का सौदा होगा।
इंसेंटिव का आकर्षण
चीनी कंपनियों की खासतौर पर इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में दिलचस्पी की वजह परफॉर्मेंस लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) जैसी स्कीम भी है, जिसके तहत भारतीय कंपनियों को सरकार से वित्तीय मदद मिलती है। इलेक्ट्रॉनिक गुड्स बनाने वाली चीनी कंपनियों का मानना है किइससे भारत में प्रॉडक्ट्स बनाने की लागत उनके देश के बराबर ही बैठेगी।