


चीन पड़ोसी देशों के जरिए भारत को परेशान करने की कोशिश कर रहा है। बांग्लादेश, मालदीव और पाकिस्तान इसी के उदाहरण हैं। लेकिन भारत ने भी अब चीन को उसी की भाषा में जवाब देना शुरू कर दिया है। फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइल देने के बाद अब भारत ने चीन की दुखती रग को जोर से दबा दिया है। भारतीय सेना, उस जगह पर मिलिट्री ड्रिल चला रही है, जिसे चीन का बैकयार्ड कहा जाता है। मंगोलिया, भारत और चीन के बीच प्रभाव के लिए एक नया युद्धक्षेत्र बनकर उभर रहा है। चीन ने जैसे ही रूस के साथ मिलकर मंगोलिया के साथ एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए, ठीक वैसे ही भारत ने भी इस मध्य एशियाई देश के साथ मिलिट्री ड्रिल शुरू कर दी। भारत ने तेजी से मंगोलिया के साथ सैन्य संबंधों को बनाना शुरू कर दिया है। भारत और मंगोलिया के बीच वार्षिक द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास 'नोमैडिक एलिफेंट 2025' का 17वां संस्करण 31 मई को शुरू हुआ, जबकि इससे ठीक एक दिन पहले मंगोलिया ने अपने दो पड़ोसियों चीन और रूस के साथ सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए।
जैसे ही मंगोलिया की सेना ने इंडियन आर्मी के साथ मिलकर मिलिट्री ड्रिल चलाना शुरू किया, चीन भड़क गया। चीन ने मंगोलिया को इस "राजनयिक स्वतंत्रता" के खिलाफ चेतावनी दी है। एक चीनी मीडिया आउटलेट ने धमकी दी है कि भारत के साथ युद्धाभ्यास ने रूस से चीन तक पावर ऑफ साइबेरिया 2 पाइपलाइन परियोजना पर संदेह की छाया डाल दी है, जो मंगोलिया से होकर गुजरेगी। चीन को डर है कि मंगोलिाय के साथ अच्छे संबंध बनाकर भारत, मंगोलिया से गुजरने वाली इस पाइपलाइन को अपनी मर्जी से उसके खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है। यह पाइपलाइन रूस से चीन तक मंगोलिया के रास्ते 50 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस ले जाने वाली है, जिसकी लागत करीब 100 अरब डॉलर है।
भारत-चीन के बीच का अखाड़ा बना मंगोलिया
भारत और मंगोलिया के बीच रक्षा सहयोग नई बात नहीं है। 'नोमैडिक एलिफेंट' जैसे अभ्यास वर्षों से हो रहे हैं, लेकिन मौजूदा जियो-पॉलिटिकलक हालात में इसका महत्व काफी ज्यादा हो चुका है। यह सैन्य अभ्यास मंगोलिया की राजधानी उलानबातर के विशेष बल प्रशिक्षण केंद्र में हो रहा है और इसमें आतंकवाद निरोधक अभ्यास, संयुक्त संचालन और संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों की सिमुलेशन गतिविधियां शामिल हैं। भारत मंगोलिया के साथ सिर्फ सैन्य नहीं बल्कि आर्थिक और धार्मिक रिश्तों को भी मजबूत कर रहा है। भारत की कोशिश है कि वह चीन को बायपास करके मंगोलिया से कोकिंग कोल, तांबा और रेयर अर्थ एलिमेंट्स जैसे महत्वपूर्ण खनिज सीधे रूस के जरिए भारत लाए। इसके लिए भारत रूस को ट्रांजिट कॉरिडोर के रूप में देखने लगा है।