जब मस्तिष्क किसी खतरे, तनाव या असुरक्षा को महसूस करता है तब वह शरीर को सतर्क (Alert Mode) में डाल देता है। इसी अवस्था में कई बार नाखून चबाना, बार-बार काम टालना, बाल खींचना, ज़रूरत से ज़्यादा फोन चलाना जैसी नुकसानदेह प्रवृत्तिया विकसित हो जाती हैं।
ऐसा क्यों होता है?
हमारा एमिग्डाला (Amygdala) नामक मस्तिष्क का हिस्सा खतरे को पहचानता है जैसे ही तनाव या डर महसूस होता है, मस्तिष्क “लड़ो या भागो” मोड में चला जाता है इस दौरान दिमाग तर्क से नहीं, बल्कि आदतों और तात्कालिक राहत पर काम करता है। नाखून चबाना या टालमटोल करना दरअसल दिमाग का यह तरीका है कि “किसी तरह तनाव कम करो, भले ही तरीका नुकसानदेह क्यों न हो।”
नाखून चबाने की आदत
यह एंग्जायटी और अंदरूनी बेचैनी का संकेत हो सकती है। इससे मस्तिष्क को कुछ सेकंड की राहत मिलती है, लेकिन लंबे समय में यह आदत बन जाती है। कई बार दिमाग काम को खतरे या बोझ की तरह देखने लगता है, इसलिए वह उस काम से बचने के लिए बहाने ढूंढता है। असल में यह आलस्य नहीं, बल्कि तनाव से बचाव की प्रतिक्रिया होती है।