भारतीयों की थाली में प्रोटीन की मात्रा तो बढ़ रही है, मगर उसकी गुणवत्ता आधी रह गई है। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के नए अध्ययन में सामने आया है कि भारतीय प्रतिदिन औसतन 55.6 ग्राम प्रोटीन का सेवन करते हैं, लेकिन उसमें से करीब 50 प्रतिशत हिस्सा चावल, गेहूं, सूजी और मैदा जैसे अनाजों से आता है। ये अनाज कम गुणवत्ता वाले अमीनो एसिड वाले होते हैं और शरीर इन्हें पूरी तरह उपयोग नहीं कर पाता।
यह अध्ययन 2023-24 के एनएसएसओ घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) पर आधारित है और भारत की खान-पान प्रणाली में बढ़ती पोषण असमानता को उजागर करता है।
अध्ययन में यह आया सामने
- भारतीय औसतन 55.6 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन लेते हैं, लेकिन उसका आधा हिस्सा कम गुणवत्ता वाले अनाजों से आता है।
- दालों की हिस्सेदारी घटकर केवल 11% रह गई है, जबकि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन ने इसे 19% रखने की सिफारिश की है।
- मोटे अनाजों (ज्वार, बाजरा, रागी) की खपत में एक दशक में करीब 40% की गिरावट आई है।
- सबसे अमीर 10% आबादी, सबसे गरीब वर्ग की तुलना में 1.5 गुना अधिक प्रोटीन लेती है।
- हरी पत्तेदार सब्जियां दोनों ही वर्गों शाकाहारी और मांसाहारी की थालियों से लगभग गायब हैं।
मोटे अनाजों की गिरावट और तेलों की बढ़त
भारत की थाली में पोषण असंतुलन की एक प्रमुख वजह मोटे अनाजों का घटता उपयोग है। बीते एक दशक में ज्वार, बाजरा और रागी जैसे पौष्टिक अनाजों की खपत करीब 40 प्रतिशत घट गई है। अब औसतन भारतीय केवल अनुशंसित स्तर का 15 प्रतिशत मोटा अनाज ही लेते हैं।
इसके विपरीत, रियायती चावल और गेहूं की व्यापक उपलब्धता ने गरीब वर्गों में सफेद अनाजों पर निर्भरता और बढ़ा दी है। इसी अवधि में वसा और तेल का सेवन 1.5 गुना बढ़ा है, और उच्च आय वर्गों में यह लगभग दोगुना पहुंच गया है।
फाइबर, नमक और सब्जियों का असंतुलन
फाइबर सेवन में मामूली सुधार हुआ है। औसतन 31.5 ग्राम प्रतिदिन, जो सुझाए गए 32.7 ग्राम के करीब है। हालांकि, यह फाइबर मुख्यतः अनाजों से, न कि दालों, फलों और सब्जियों से आता है।
हरी पत्तेदार सब्जियों की अत्यंत कम खपत से पाचन स्वास्थ्य और प्रतिरोधक क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। भारतीय प्रतिदिन औसतन 11 ग्राम नमक लेते हैं। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिश से दोगुना है।