दक्षिण कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए एक विस्तृत अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने चेतावनी दी है कि रात में बढ़ता तापमान दुनिया भर की नींद पर गहरा असर डाल रहा है। नींद का समय छोटा हो रहा है, गुणवत्ता गिर रही है, और इसका सबसे तीखा प्रभाव गरीब, बीमार और कठिन परिस्थितियों में रहने वाली आबादी पर पड़ रहा है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि भविष्य में हर इंसान साल भर में केवल गर्म रातों के कारण 24 घंटे तक की नींद खो सकता है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है।
रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा
दक्षिण कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल ब्रिघम एंड विमेन्स हॉस्पिटल के सहयोग से किए गए इस अध्ययन में 14,232 अमेरिकियों की 1.2 करोड़ रातों की नींद का डेटा शामिल किया गया। शोधकर्ताओं ने फिटबिट से रिकॉर्ड किए गए नींद के चरण, नींद टूटने की आवृत्ति, नींद आने में लगने वाला समय और मौसम संबंधी आंकड़ों का विस्तार से विश्लेषण किया। नतीजों से स्पष्ट हुआ कि रात के तापमान में हर 10 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी औसतन 2.63 मिनट की नींद घटा देती है। यह कमी मामूली दिख सकती है, पर जब करोड़ों लोग समग्र रूप से अपनी नींद खोते हैं, तो यह स्थिति सीधे सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का रूप ले लेती है। खास बात यह रही कि पश्चिमी तट अर्थात वेस्ट कोस्ट में रहने वाले लोग बाकी क्षेत्रों की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक नींद खो रहे हैं। जून से सितंबर के महीनों में नींद की अधिकतम गिरावट दर्ज हुई।
कौन सबसे ज्यादा प्रभावित
विश्लेषण ने दिखाया कि बढ़ते तापमान का सबसे अधिक असर महिलाओं, गरीबों और पुरानी बीमारियों से जूझ रही आबादी पर पड़ा। ऐसे लोग पहले ही स्वास्थ्य एवं आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे होते हैं, और गर्म रातों की वजह से नींद की कमी उनके लिए नई स्वास्थ्य जटिलताएँ पैदा कर रही है।विशेषज्ञों के अनुसार, रात का बढ़ता तापमान शरीर को स्वाभाविक रूप से ठंडा नहीं होने देता।