


मानव सभ्यता के विस्तृत इतिहास में यदि कोई ऐसा चरित्र है जिसने धर्म, दर्शन, प्रेम, राजनीति और अध्यात्म—सभी को एक साथ समेट लिया, तो वह हैं योगेश्वर श्रीकृष्ण। वे केवल एक पौराणिक कथा के पात्र नहीं, बल्कि सनातन धर्म की आत्मा, युगों-युगों के प्रेरणास्रोत और मानवता के शाश्वत नायक हैं।
कृष्ण का जीवन गहन दर्शन और अद्भुत व्यवहारिकता का संगम है। बचपन में ग्वालबालों संग खेलते हुए उनकी सरलता, रास में प्रेम का दिव्य माधुर्य, कंस वध में अन्याय के विरुद्ध खड़ा होने का साहस, द्वारका में सुशासन की स्थापना और अंततः कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दिया गीता का उपदेश—ये सब इस बात का प्रमाण हैं कि वे केवल देवता नहीं, बल्कि पूर्ण पुरुष, नीति-निपुण मार्गदर्शक और जीवन के अद्वितीय शिक्षक थे।
भगवद्गीता, जो उनके मुख से निकला अमृत है, आज भी संसार का सर्वोत्तम दार्शनिक ग्रंथ है। गीता का यह उद्घोष— “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” (तुझे केवल कर्म करने का अधिकार है, फल की चिंता करने का नहीं)—मानव जीवन का ऐसा सूत्र है जो हर युग में प्रासंगिक रहा है और रहेगा। यह वचन व्यक्ति को न केवल निष्काम कर्म की ओर प्रेरित करता है, बल्कि मानसिक शांति और आत्मबल भी प्रदान करता है।
कृष्ण का दर्शन यह भी सिखाता है कि धर्म कोई कठोर रूढ़ि नहीं, बल्कि समय, स्थान और परिस्थिति के अनुरूप न्याय और संतुलन की रक्षा का नाम है। उनका व्यवहार हमें यह बताता है कि जीवन के संघर्षों में केवल आदर्श ही नहीं, बल्कि व्यवहारिक बुद्धि भी उतनी ही आवश्यक है। यही कारण है कि वे एक ओर “योगेश्वर” कहे जाते हैं और दूसरी ओर “नीतिपुरुष” भी।
कृष्ण की शिक्षा केवल युद्धभूमि तक सीमित नहीं है; वह हमारे अंतरमन की लड़ाई में भी उतनी ही प्रासंगिक है। जब-जब मन मोह और मोहभंग के बीच डगमगाता है, तब-तब गीता का यह संदेश जीवन की धारा को स्थिर करता है—
“समत्वं योग उच्यते” (समभाव ही योग है)।
यह समभाव ही है जो हमें जीत और हार, लाभ और हानि, सुख और दुःख—सभी में संतुलन बनाए रखना सिखाता है।
आज की वैश्विक परिस्थिति में, जब मानवता युद्ध, आतंक, असंतुलित जीवनशैली और मानसिक तनाव से जूझ रही है, तब कृष्ण का उपदेश पहले से कहीं अधिक आवश्यक है। वे याद दिलाते हैं कि सच्चा धर्म वही है जो हमें भीतर से जागृत करे, कर्म की ओर प्रेरित करे और आत्मा को ब्रह्म से जोड़ दे।
कृष्ण कालजयी इसलिए हैं क्योंकि वे केवल इतिहास नहीं, भविष्य भी हैं। वे हर युग के लिए नए अर्थ में जन्म लेते हैं। प्रेमी उन्हें राधा-कृष्ण में पाता है, साधक उन्हें ध्यान में, कर्मयोगी उन्हें गीता में, और दार्शनिक उन्हें अद्वैत सत्य के प्रतीक में खोजता है। यही उनकी अनंतता है।
कृष्ण केवल देवता नहीं, चेतना हैं। वे वह ज्योति हैं जो अंधकारमय समय में भी मार्गदर्शन देती है। वे सनातन धर्म के ऐसे कालजयी नायक हैं, जिनकी गूंज तब तक सुनाई देती रहेगी जब तक यह सृष्टि अस्तित्व में है।