सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में तेजी से बढ़ रहे साइबर अपराधों और विशेष रूप से “डिजिटल अरेस्ट” (Digital Arrest) जैसे ठगी के मामलों पर गंभीर चिंता जताई है। अदालत ने कहा कि इन अपराधों के कारण अब तक 3,000 करोड़ रुपये से अधिक की रकम लोगों से ठगी जा चुकी है, जिनमें कई वरिष्ठ नागरिक भी शामिल हैं। अदालत ने स्पष्ट कहा कि यदि समय रहते कड़ी कार्रवाई नहीं की गई, तो स्थिति और गंभीर हो सकती है।
यह टिप्पणी जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्ज्वल भुयान और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने एक स्वतः संज्ञान (suo motu) मामले की सुनवाई के दौरान की। यह मामला उन धोखाधड़ी गिरोहों से जुड़ा है जो पुलिस या न्यायिक अधिकारी बनकर नकली कोर्ट आदेश दिखाते हैं और लोगों को डिजिटल तरीके से “गिरफ्तार” करने की धमकी देकर पैसे वसूलते हैं।
सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि यह गिरोह सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि म्यांमार और थाईलैंड जैसे देशों से भी संचालित किए जा रहे हैं। गृह मंत्रालय की साइबर क्राइम डिविजन और CBI ने अपनी सीलबंद रिपोर्ट में बताया कि इन अंतरराष्ट्रीय नेटवर्कों पर जांच जारी है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को जानकारी दी कि CBI ने कई मामलों की जांच शुरू कर दी है, जिसमें गृह मंत्रालय की तकनीकी सहायता ली जा रही है। अदालत ने इस मामले में एक अमिकस क्यूरी (न्यायालय सहायक) भी नियुक्त किया है और अगली सुनवाई 10 नवंबर को होगी।
पहले की सुनवाई में अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से ऐसे मामलों से संबंधित FIR की जानकारी देने को कहा था। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि यदि जरूरत पड़ी तो पूरे मामले की जांच CBI को सौंपी जा सकती है, क्योंकि यह अपराध देशभर में या सीमा पार तक फैला हुआ प्रतीत होता है।