उज्जैन सिंहस्थ क्षेत्र में जमीनों के स्थायी अधिग्रहण को लेकर लागू किया गया लैंड पूलिंग एक्ट राज्य सरकार ने वापस ले लिया है। विधायकों और भारतीय किसान संघ के लगातार विरोध के चलते सरकार ने यह निर्णय लिया। नगरीय विकास एवं आवास विभाग की ओर से इस संबंध में आधिकारिक आदेश जारी कर दिए गए हैं।
लैंड पूलिंग एक्ट क्या है और विवाद की वजह क्या रही?
लैंड पूलिंग एक्ट के तहत सरकार विकास परियोजनाओं के लिए किसानों से जमीन लेती है और उसी क्षेत्र को विकसित करने के बाद जमीन का एक हिस्सा प्लॉट या विकसित भूमि के रूप में मूल मालिकों को लौटाती है। सरकार का तर्क है कि इससे किसानों को उनकी जमीन का बेहतर मूल्य मिलता है और योजनाबद्ध विकास संभव हो पाता है।
हालांकि उज्जैन में इस एक्ट को लेकर किसानों ने कड़ा विरोध जताया। किसानों का कहना था कि जमीन देने की प्रक्रिया स्वैच्छिक नहीं दिख रही है, वहीं विकसित जमीन कब और कितनी मिलेगी, इस पर भी कोई स्पष्टता नहीं है। सिंहस्थ क्षेत्र और महाकाल लोक से जुड़े इलाकों में जमीन की कीमत काफी अधिक होने के कारण किसानों को नुकसान की आशंका थी। कुछ गांवों में बिना पर्याप्त सहमति के सर्वे और नोटिस जारी होने की शिकायतें भी सामने आईं। इन्हीं वजहों से उज्जैन में लैंड पूलिंग एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन, ज्ञापन और जनप्रतिनिधियों पर दबाव बढ़ता गया।
उज्जैन उत्तर से भाजपा विधायक अनिल जैन ने 15 दिसंबर को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को पत्र लिखकर इस मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित किया था। पत्र में उन्होंने स्पष्ट किया कि लैंड पूलिंग एक्ट को लेकर आम नागरिकों और किसानों में भारी असंतोष है। उन्होंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि उज्जैन में इस एक्ट को जबरन लागू न किया जाए और किसानों व जमीन मालिकों की सहमति तथा भरोसे को प्राथमिकता दी जाए। साथ ही सिंहस्थ 2028 और धार्मिक महत्व वाले क्षेत्रों के लिए जमीन नीति में अलग और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने तथा किसी भी योजना से पहले स्थानीय जनप्रतिनिधियों और प्रभावित लोगों से व्यापक संवाद करने की मांग भी रखी।
