


लोजपा (आर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान एक बार फिर चर्चा में हैं। उनका अंदाज भले ही नया हो, लेकिन लक्ष्य पुराना है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने जदयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारकर नीतीश कुमार के कद को छोटा किया था। अब उनके बदले हुए तेवर से जेडीयू को फिर से खतरे में डालते दिख रहे हैं। चिराग पासवान की असली मंशा क्या है, यह एक बड़ा सवाल है।
चिराग के बयान से सियासी वबंडर
चिराग पासवान ने एक बयान दिया था, जिससे यह धमाल मचा हुआ है। उन्होंने कहा था कि बिहार मुझे बुला रहा है। मेरा राजनीति में आने का कारण ही बिहार और बिहारी रहा है। सांसद बनने से ज्यादा महत्वपूर्ण मेरे लिए एक विधायक की भूमिका होगी, जहां मैं अपने राज्य के लिए ज्यादा कार्य कर सकूं। इस बयान के बाद यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि चिराग मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं।
सीटों के बंटवारे का है खेल?
असल में, यह सारा खेल सीटों के बंटवारे का है। चिराग पासवान अभी जो कुछ भी कर रहे हैं, वह भाजपा की रणनीति का हिस्सा है। वह अभी भी मोदी के हनुमान हैं। इस बार जीतन राम मांझी भी हनुमान की भूमिका में हैं। दोनों ही नेता सीटों की हिस्सेदारी को लेकर अपनी बात रख रहे हैं। भाजपा जानती है कि अगर घटक दलों की हिस्सेदारी बढ़ेगी, तो जदयू की हिस्सेदारी कम हो जाएगी। भाजपा अंदरूनी तौर पर यह भी चाहती है कि सदन में जदयू की ताकत कम हो।
दबाव की राजनीति कर रहे चिराग?
चिराग पासवान लोकसभा में 100 प्रतिशत स्ट्राइक रेट के साथ बिहार विधानसभा में 35 से 40 सीटें लड़ना चाहते हैं। वहीं, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा कम से कम 20 सीटों पर लड़ना चाहती है। इन दोनों की मंशा तभी पूरी होगी, जब जदयू अपनी हिस्सेदारी कम करेगी। भाजपा अप्रत्यक्ष रूप से यही चाहती है कि सदन में जदयू की ताकत कम हो।