


प्रधानमंत्री मोदी ने इस साल लाल किले से 15 अगस्त के मौके पर GST रिफॉर्म का ऐलान किया। इस ऐलान के चलते अब 22 सितंबर से कई चीजें सस्ती होंगी। इस साल आर्थिक और आम लोगों से जुड़ी चीजों पर यह दूसरा बड़ा रिफॉर्म है। पहला रिफॉर्म साल के शुरू में बजट में हुआ, जब 12 लाख तक की कमाई पर इनकम टैक्स को समाप्त किया गया। जाहिर है, ऐसे फैसलों को राजनीति के चश्मे से भी देखा जाएगा। क्या केंद्र सरकार अपने तीसरे टर्म में अपने कोर वोटर को खुश करना चाहती है, जिनमें कहीं न कहीं थकान दिखने लगी थी? क्या राष्ट्रवाद या हिंदुत्व जैसे भावनात्मक मुद्दे अब उतने प्रभावी नहीं रहे, और लोग भी कहीं न कहीं असल मुद्दों की ओर जाने लगे हैं? इन दो बड़े रिफॉर्म के बीच राजनीति की इस धारा को समझने की कोशिश की जा रही है।
मिलने लगे थे संकेत
हालांकि GST रिफॉर्म को कई और मुद्दों से जोड़कर देखा गया। मसलन, अमेरिका के साथ टैरिफ विवाद के अलावा इसे इकॉनमी में सुस्त डिमांड को ठीक करने की दिशा में भी उठाया गया कदम बताया गया। लेकिन हकीकत यह है कि सरकार और BJP को भी अंदाजा लगने लगा है कि अब असल मुद्दों की ओर लौटने का टाइम आ गया है। इसका पहला बड़ा संकेत 2024 आम चुनाव में मिला, जब राम मंदिर निर्माण और इसके लिए चुनाव से पहले हुए बहुत बड़े आयोजन के बावजूद BJP को उम्मीद के अनुरूप सफलता नहीं मिली। एक हालिया सर्वे में बताया गया कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद हुए ऑपरेशन सिंदूर का सरकार और BJP को उतना राजनीतिक लाभ नहीं मिलता दिखा, जितना पहले के सर्जिकल या एयर स्ट्राइक के बाद मिला था। उसी सर्वे में यह बताया गया कि अब लोग हिंदुत्व और राष्ट्रवाद से इतर महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों से अधिक जुड़ते दिखने लगे हैं।