


भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में श्रावण मास का विशेष महत्व है। इस मास को भगवान शिव का प्रिय मास माना जाता है। विशेषकर सोमवार के दिन शिव साधना, व्रत एवं जलाभिषेक का विशेष विधान बताया गया है। यह केवल एक धार्मिक परंपरा भर नहीं है, बल्कि आत्मशुद्धि, मनोबल और संकल्प शक्ति को जाग्रत करने का अवसर भी है।
श्रावण सोमवार के दिन श्रद्धालु उपवास रखते हैं, शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, भांग अर्पित करते हैं। परंतु इसके पीछे गहरा दार्शनिक संकेत भी छुपा है। शिव को जल अर्पित करना हमारे भीतर की अग्नि — काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि — को शीतल करने का प्रतीक है। बेलपत्र, जो तीन पत्तों से बना होता है, त्रिगुण — सत्त्व, रज, तम — को शिवत्व में विलीन करने का संकेत देता है।
इसी श्रावण में संकल्प शक्ति का भी अत्यंत महत्व है। श्रद्धालु किसी शुभ कार्य, तपस्या, जप, ध्यान या सामाजिक सेवा के लिए मन में दृढ़ संकल्प लेते हैं। क्योंकि श्रावण मास में वातावरण भी शुद्ध और ऊर्जा से परिपूर्ण रहता है, जिससे साधना में गहराई आती है।
भगवान शिव स्वयं ‘संकल्प’ के प्रतीक हैं। वे योगीश्वर हैं, विरक्ति और भोग दोनों के संतुलन के अधिपति हैं। जो साधक श्रावण के सोमवार में शिव के चरणों में अपना संकल्प अर्पित करता है, उसकी साधना में दिव्यता और स्थिरता आती है।
इसलिए श्रावण, सोमवार, शिव और संकल्प — ये चारों शब्द मिलकर एक ऐसा अध्यात्मिक चक्र बनाते हैं, जिसमें प्रवेश करने से जीवन के समस्त विकार नष्ट होते हैं और साधक के भीतर सच्चे शिवत्व का उदय होता है। श्रद्धा, नियम, संयम और समर्पण के साथ श्रावण सोमवार का व्रत तथा शिव उपासना करने वाला साधक न केवल लौकिक बल्कि पारलौकिक सुख-शांति को भी प्राप्त करता है।