वर्तमान समाज में योग की प्रासंगिकता
आज का समाज तकनीकी उन्नति और भौतिक प्रगति की दौड़ में निरंतर आगे बढ़ रहा है, लेकिन इस विकास की चमक के पीछे कई गहरी समस्याएँ छुपी हुई हैं — जैसे तनाव, अवसाद, असंतुलित जीवनशैली, सामाजिक अलगाव, और पर्यावरणीय असंतुलन। ऐसे समय में योग, जो कि भारत की हजारों वर्षों पुरानी आध्यात्मिक देन है, एक संतुलित, समग्र और शांतिपूर्ण जीवन जीने का मार्ग प्रदान करता है।
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Sanjay Purohit
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आज का समाज तकनीकी उन्नति और भौतिक प्रगति की दौड़ में निरंतर आगे बढ़ रहा है, लेकिन इस विकास की चमक के पीछे कई गहरी समस्याएँ छुपी हुई हैं — जैसे तनाव, अवसाद, असंतुलित जीवनशैली, सामाजिक अलगाव, और पर्यावरणीय असंतुलन। ऐसे समय में योग, जो कि भारत की हजारों वर्षों पुरानी आध्यात्मिक देन है, एक संतुलित, समग्र और शांतिपूर्ण जीवन जीने का मार्ग प्रदान करता है।

1. मानसिक और भावनात्मक तनाव से मुक्ति का उपाय


वर्तमान समाज मानसिक रूप से अधिक थका हुआ है। काम का दबाव, शिक्षा में प्रतिस्पर्धा, सोशल मीडिया की तुलना, और जीवन की अनिश्चितता— ये सभी मिलकर एक तनावपूर्ण मानसिक वातावरण बनाते हैं।

योग के अंतर्गत ध्यान (ध्यान योग), प्राणायाम और आसनों का अभ्यास मन को शांत करता है, मस्तिष्क की तरंगों को नियंत्रित करता है, और चिंता तथा अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं से राहत दिलाता है।


उदाहरण के लिए, कॉर्पोरेट ऑफिसों में 'वर्कप्लेस योग' अब एक सामान्य प्रवृत्ति बन चुकी है, जिससे कर्मचारियों की कार्यक्षमता बढ़ रही है और मानसिक तनाव घट रहा है।

2. जीवनशैली रोगों के समाधान के रूप में योग


हमारा समाज तेजी से "लाइफस्टाइल डिज़ीज़" यानी मधुमेह, मोटापा, उच्च रक्तचाप, थायरॉइड और दिल की बीमारियों की ओर बढ़ रहा है। ये रोग असंतुलित खानपान, व्यायाम की कमी और मानसिक तनाव के परिणाम हैं।

योग का नियमित अभ्यास शरीर की आंतरिक सफाई (डिटॉक्सिफिकेशन) करता है, पाचन क्रिया को मजबूत करता है, और हार्मोन संतुलन के माध्यम से रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ाता है।


वर्तमान महामारी और पोस्ट-कोविड युग में, योग और प्राणायाम ने लाखों लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत किया है, जिससे इसकी वैज्ञानिक उपयोगिता को भी विश्वभर में मान्यता मिली है।

3. सामाजिक और पारिवारिक संबंधों में सुधार


आज की सामाजिक संरचना में व्यक्तिगत संबंध कमजोर होते जा रहे हैं — परिवारों में संवाद की कमी, तलाक की दर में वृद्धि, और पीढ़ीगत मतभेद बढ़ते जा रहे हैं।

योग केवल व्यक्तिगत साधना नहीं, यह सामूहिक सद्भाव और करुणा को बढ़ावा देता है। योगाभ्यास से व्यक्ति में धैर्य, सहिष्णुता और आत्मनिरीक्षण की भावना आती है, जिससे पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में मधुरता आती है।

4. युवाओं में योग की आवश्यकता


आज के युवा डिजिटल एडिक्शन, स्क्रीन टाइम, नींद की कमी, और भविष्य की अनिश्चितता से जूझ रहे हैं। परिणामस्वरूप उनमें चिड़चिड़ापन, अवसाद और उद्देश्यहीनता बढ़ रही है।

योग, विशेष रूप से ध्यान और प्रणायाम, युवाओं में एकाग्रता, आत्मविश्वास और भावनात्मक संतुलन को बढ़ाता है। स्कूलों और कॉलेजों में योग को नियमित रूप से पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की दिशा में प्रयास भी हो रहे हैं।


5. पर्यावरण और प्राकृतिक संतुलन की दिशा में योगदान


योग केवल शारीरिक या मानसिक अभ्यास नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने का दर्शन है। यह 'सादा जीवन, उच्च विचार' को प्रोत्साहित करता है, जिससे उपभोक्तावाद कम होता है और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है।


एक 'योगिक जीवनशैली' अपनाकर व्यक्ति प्रकृति के करीब आता है — वह अपने उपभोग को सीमित करता है, प्लास्टिक और रसायनों से बचता है, और स्थायी जीवन जीने की ओर प्रेरित होता है।


6. वैश्विक स्तर पर योग की भूमिका


2015 से अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) ने योग को केवल भारत ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व में पहचान दिलाई है। अमेरिका, यूरोप, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में लाखों लोग योग को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना चुके हैं।


संयुक्त राष्ट्र, WHO, और अनेक वैश्विक संस्थाएं अब योग को मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण का आधार मान रही हैं। यह भारत के लिए सांस्कृतिक कूटनीति (soft power) का एक सशक्त माध्यम भी बन चुका है।

वर्तमान समाज के हर स्तर — व्यक्ति, परिवार, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और वैश्विक संबंधों में योग की भूमिका अत्यंत प्रासंगिक है। यह केवल एक व्यायाम नहीं, बल्कि एक पूर्ण जीवन दर्शन है, जो हमें भीतर और बाहर दोनों में संतुलन सिखाता है।

यदि आज का मानव समाज योग को केवल एक शरीर की क्रिया न मानकर जीवन की आवश्यकता माने, तो यह ना केवल मानवता को रोगों से मुक्त कर सकता है, बल्कि उसे भीतर से पूर्ण और शांतिपूर्ण बना सकता है।

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