


वर्तमान राजनीतिक परिपेक्ष्य में पूर्णिया सांसद पप्पू यादव और कांग्रेस के युवा नेता कन्हैया कुमार को दरकिनार कर महागठबंधन का चलना मजबूरी है। इसकी वजह है इन दोनों में नेतृत्व करने का और जनता से सीधे संवाद का गुण। इसे न तो राजद सुप्रीमो लालू यादव, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और कांग्रेस के अनुभवी नेता स्वीकार करेंगे।
राजनीतिक गलियारों में जब कभी भी सांसद पप्पू यादव और वाम दल से कांग्रेस में आए युवा नेता कन्हैया कुमार के बारे में चर्चा हुई तो अधिकांश राजनीतिज्ञों का यह मत रहा कि राजद सुप्रीमो लालू यादव के रहते ये नेता खुलकर अपनी पारी नहीं खेल पाएंगे। इसकी खास वजह है कि ये दोनों नेता तेजस्वी के भविष्य की राजनीति में आगे खड़े दिखते हैं।
कौन हैं पप्पू यादव?
पप्पू यादव खास तौर पर सीमांचल के वैसे नेता हैं, जिन्होंने अपनी पहचान खुद बनाई। पप्पू यादव पहली बार वर्ष 1990 में सिंघेश्वर विधानसभा से निर्दलीय विधायक बने। वर्ष 1991 से 1996 तक पूर्णिया से निर्दलीय सांसद रहे। 1996 में फिर पूर्णिया से दूसरी बार सांसद बने। 1999 में तीसरी बार पूर्णिया से निर्दलीय सांसद रहे। चौथी बार राजद के टिकट पर मधेपुरा लोकसभा से सांसद रहे। वर्ष 2014 में पांचवीं बार राजद से सांसद बने। छठी बार पप्पू यादव एक बार फिर 2024 में पूर्णिया से निर्दलीय सांसद बने।
क्यों फजीहत हो रही है पप्पू यादव की?
कांग्रेस के पुराने नेताओं और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को पप्पू यादव के नेतृत्व की शैली, सामाजिक कार्यों में लगातार भागीदारी, विपदा में जनता के बीच रहने से जो उनकी छवि बनी है उससे खतरा महसूस होता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता को लगता हैं कि इनकी लोकप्रियता कहीं प्रदेश कांग्रेस को अपनी जकड़न में न लें। पहले ही कांग्रेस में उनकी पत्नी राज्य सभा सांसद रंजीत रंजन हैं। वे छत्तीसगढ़ की प्रभारी हैं। पप्पू यादव को कांग्रेस में शामिल हो जाने से कांग्रेस के बड़े नेता जो अभी तक कांग्रेस को राजद की कठपुतली बनाकर अपना हित साध रहे हैं, उनका पार्टी से वर्चस्व समाप्त हो जाएगा।