जैव विविधता की हानि – जीवन के अस्तित्व को खतरा
जलवायु परिवर्तन पर कम ही सही लेकिन हर साल सालाना सम्मेलन के वक्त कुछ चर्चा तो होती है लेकिन जैव-विविधता को लेकर मीडिया में चुप्पी ख़तरनाक है.
Img Banner
profile
Sanjay Purohit
Created AT: 03 फरवरी 2025
8
0

हालांकि जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता दोनों ही विषयों पर संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कंन्वेन्शन 1992 में हुये रियो अर्थ समिट में एक साथ स्थापित किए गए और दुनिया के सभी देश दोनों ही सम्मेलनों के सदस्य हैं लेकिन जितनी बात जलवायु परिवर्तन पर सालाना सम्मेलन को लेकर होती है उसकी आधी भी जैव विविधता पर होने वाले द्विवार्षिक सम्मेलन पर नहीं होती.

क्या है जैव विविधता या बायोडाइवर्सिटी

जैव विविधता धरती पर जीवन के अलग-अलग रूपों और नैसर्गिक पैटर्न को दर्शाती है. जो पिछले 450 साल में धीरे धीरे तैयार हुई है. जीन और बैक्टीरिया से जंगल और कोरल रीफ जैसे सारे पास्थितिक तंत्र यानी इकोसिस्टम इसका ही रूप हैं. हमारे जीवन का चक्र या जाला इस पर टिका है. चाहे भोजन हो या पानी, साफ हवा हो या आर्थिक विकास सब बायोडाइवर्सिटी है जुड़े हैं.

एक दूसरे से जुड़े हैं ग्लोबल वॉर्मिंग और जैव विविधता

अक्सर ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन के रूप में उसके प्रभाव को लेकर तो काफी लिखा और बोला जाता है, जो सही भी है, लेकिन जैव विविधता के महत्व और उसे हो रही हानि की अनदेखी कर दी जाती है. सच यह है कि हमारे जीवन का अस्तित्व जैव विविधता के कारण ही कायम है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने के लिए जैव विविधता को संरक्षित करना बहुत ज़रूरी है.

वैसे जैव विविधता के विनाश के लिए इंसान द्वारा कृषि और अन्य कार्यों के लिए किया गया भू-प्रयोग ज़िम्मेदार है. वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि धरती के जिस हिस्से में बर्फ नहीं है, उसके 70% क्षेत्रफल को मानव अपने प्रयोग द्वारा बदल चुका है, और इससे भारी नुकसान हुआ है. कई जन्तु और वनस्पतियां अपना बसेरा खत्म हो जाने के कारण धरती से विलुप्त हो गए या इस खतरे का सामना कर रहे हैं.

दूसरी ओर ग्लोबल वॉर्मिंग और इससे हो रहा जलवायु परिवर्तन जैव विविधता के लिए अतिरिक्त खतरा है. आईपीसीसी के वैज्ञानिकों का कहना है कि जहां धरती के तापमान में 2 डिग्री की वृद्धि से 8 प्रतिशत स्तनधारी अपना हैबिटाट खो देंगे वहीं 3 डिग्री की बढ़ोतरी से पृथ्वी के 41 प्रतिशत स्तनधारी अपना आधा बसेरा खो देंगे. जहां 1.5 डिग्री तापमान वृद्धि से 70 प्रतिशत से अधिक कोरल रीफ खत्म होंगे वहीं 2 डिग्री की बढ़ोत्तरी इन्हें पूरी तरह नष्ट कर देगी.

जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के लिए जैव विविधता ज़रूरी

ग्लोबल वॉ़र्मिंग के पीछे मूल वजह इंसानी हरकतों से वातावरण में बढ़ रही ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा है. जहां कुल उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों में आधी वातावरण में जमा हो जाती हैं वहीं लगभग आधा हिस्सा धरती और समंदर द्वारा सोख लिया जाता है. अगर धरती पर स्वस्थ इकोसिस्टम मौजूद रहेंगे तो वह नैसर्गिक कार्बन सिंक की तरह काम करेंगे और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव सीमित करने में मदद मिलेगी. मिसाल के तौर पर दलदली इलाकों (पीटलैंड) को बेकार की जगह समझ कर पाट दिया जाता है जबकि वह कार्बन सोखने में अति महत्वपूर्ण रोल अदा करते हैं.

ऐसे वेटलैंड या पीटलैंड धरती के केवल 3 प्रतिशत हिस्से पर हैं लेकिन वह सभी जंगलों द्वारा सोखे जाने वाले कार्बन डाइऑक्साइड के मुकाबले दोगुना कार्बन को सोखते हैं. इन्हें बचाने का मतलब है इन्हें गीला रखना ताकि यहां पर कार्बन जमा होता रहे.

भारत पर विशेष संकट और वित्त प्रवाह की कमी

भारत जैसे देशों के लिए, जिन्हें जलवायु परिवर्तन की सबसे अधिक चोट झेलनी पड़ रही है, जैव विविधता पर संकट सबसे अधिक चिन्ता का विषय है. यहां ग्लेशियर, पहाड़, पठार और समुद्र तटों के साथ कई वनस्पतियों और जन्तुओं की अनेक प्रजातियां हैं और ग्लोबल वॉर्मिंग की चोट जीडीपी पर बड़ा असर डाल रही है.

बंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन सैटलमेंट के डीन का कहना हैं कि, “जैव विविधता का क्षरण होने से इकोसिस्टम के पास क्लाइमेट चेंज से लड़ने की जो क्षमता होती है वह कमज़ोर हो रही है. पुरानी वनस्पतियों और मौलिक जंगलों को जो कि दोनों ही कार्बन का भंडार होते हैं — नष्ट या रूपांतरित करना विशेष रूप से चिन्ता का विषय है क्योंकि यह क्षतिपूर्ति कभी नहीं की जा सकती.”

चुनौतियाँ

मुख्य चुनौतियों में से एक होगी मौजूदा और नये क्षेत्रों- दोनों की गुणवत्ता को सुधारना क्योंकि कई संरक्षित क्षेत्रों के भीतर भी जैव विविधता का कम होना लगातार जारी है. प्रजातियों के आवागमन और पारिस्थितिक प्रक्रिया के काम-काज के लिए संरक्षित क्षेत्रों को एक-दूसरे से बेहतर ढंग से जोड़ने की आवश्यकता होगी.

आबादी के मामले में बड़े, ज़्यादा घनत्व वाले देशों और बेहद ज़्यादा घनत्ववाले छोटे देशों के द्वारा महत्वपूर्ण रूप से अतिरिक्त स्थलीय क्षेत्र, अंतर्देशीय जल और तटीय एवं समुद्री क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र प्रबंधन के भीतर लाने की संभावना कम है.

इससे भी बढ़कर, प्रजातियों की श्रेणी में जलवायु परिवर्तन के असर की वजह से बदलाव होता है और इस बात को ध्यान में रखना होगा. संरक्षित क्षेत्र जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उनका भी समाधान करना होगा. एक तरफ़ तो संरक्षित क्षेत्र बढ़ते समुद्री स्तर के कारण तटीय क्षेत्र में कमी का अनुभव कर रहे हैं, दूसरी तरफ़ उन्हें मानवीय बस्ती का भी सामना करना पड़ता है.

फसल की बर्बादी अक्सर वन्यजीवों के साथ संघर्ष का कारण बनती है लेकिन ऐसा नहीं भी हो सकता है अगर सुरक्षा उपाय के हिस्से के रूप में सरकार के द्वारा चिन्हित आसपास के क्षेत्र में फसल को वन्यजीव से नुक़सान के ख़िलाफ़ अनिवार्य रूप से बीमाकृत किया जाए.

इन सभी उपायों में प्रभावशाली प्रबंधन एवं समुदायों को शामिल करने के लिए महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होगी, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जो बड़े स्तनधारियों को शरण देते हैं. जलवायु एवं जैव विविधता की पहल में वित्तीय समर्थन की प्रतिबद्धता को पूरा करने में अभी तक विकसित देशों का ट्रैक रिकॉर्ड खराब रहा है.


ये भी पढ़ें
सीएम की घोषणा,कटंगी और पौड़ी बनेगी तहसील,लाड़ली बहना योजना सम्मेलन में शामिल हुए सीएम

IND Editorial

See all →
Sanjay Purohit
दिखावा और शानो-शौकत छोड़ सादगी से निभाएं शादी की रस्में
दिखावे के चलते समाज का एक बड़ा हिस्सा अब शादियों पर जमकर पैसा खर्च कर रहा है। नई-नई वेन्यू, रस्में, ज्यादा मेहमान और वेडिंग प्लानर आदि पर खर्च की एक होड़ है। ऐसे खर्चीले आयोजन सीमित आय वर्ग के लिए मुश्किल खड़ी करते हैं।
30 views • 2025-02-04
Sanjay Purohit
जैव विविधता की हानि – जीवन के अस्तित्व को खतरा
जलवायु परिवर्तन पर कम ही सही लेकिन हर साल सालाना सम्मेलन के वक्त कुछ चर्चा तो होती है लेकिन जैव-विविधता को लेकर मीडिया में चुप्पी ख़तरनाक है.
8 views • 2025-02-03
Sanjay Purohit
ऋतुराज बसंत : प्रकृति के वैभव और श्रृंगार का प्रतीक
वसंत पंचमी से प्रारंभ होकर फागुन तक ऋतुराज वसंत की ऊर्जा और उल्लास सब ओर कायम रहते हैं। वसंत ऋतु प्रकृति के वैभव, यौवन और शृंगार का प्रतीक है। इन दिनों शरद के तप से समृद्ध हुई प्रकृति खिलखिलाती, झूमती-गाती है। वसंत उसके ही जीवन में घटित होता है, जो जीवन के संघर्षों और अंधकारों पर विजय प्राप्त करता है।
156 views • 2025-02-03
Sanjay Purohit
अनंत को विज्ञान की कसौटी से परखने की नासमझी
ज्ञान मतलब सब कुछ जानने की क्षमता यानी जिसके बाद कुछ भी जानना शेष न रह जाए। ज्ञान केवल चेतना ही नहीं, प्रकृति के भी रहस्य उजागर कर देता है, क्योंकि ज्ञानी सृष्टि की बुद्धिमत्ता के साथ अपना संपर्क साध लेते हैं।
46 views • 2025-01-31
Sanjay Purohit
जहां जाने पर महकती है जिंदगी : फूलों की घाटिया
भारत की अनेक घाटिया अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता और रंग-बिरंगे फूलों के लिए प्रसिद्ध हैं। इन घाटियों में फूलों की किस्में और मनोरम दृश्य किसी स्वर्ग से कम नहीं लगते। महाराष्ट्र से लेकर सिक्किम, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड तक, हर जगह फूलों की घाटिया अपने अनोखे आकर्षण से पर्यटकों को मंत्रमुग्ध करती हैं।
5456 views • 2025-01-25
Sanjay Purohit
मकर संक्रांति : विराट सनातन संस्कृति के दर्शन
मकर संक्रांति भारत के विभिन्न सांस्कृतिक, धार्मिक और वैज्ञानिक आयामों का समागम है। यह पर्व न केवल कृषि और फसल की कटाई का प्रतीक है, बल्कि ऋतु परिवर्तन का भी संकेत देता है। इस दिन के उल्लास और समृद्धि का हर कोई अनुभव करता है और यह पर्व समाज में एकता, शांति और प्रकृति के साथ सामंजस्य का संदेश देता है।
0 views • 2025-01-13
payal trivedi
पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह को इन 5 कामों के लिए हमेशा याद रखेगा देश
साल 2024 सबको अलग-अलग वजह से याद रहेगा। वहीं देश की बात करे तो पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का इस दुनिया से जाना, देशभर के लिए एक दुखद याद बनकर रहेगी।
0 views • 2025-01-05
Sanjay Purohit
आर्थिक मंदी के आगाज की सम्भावनाये
मंदी का कारण और उसका उपाय खोजना महत्वपूर्ण है क्योंकि लोगों का एक बड़ा वर्ग अभी भी बहुत गरीब है। इससे भी खराब यह कि अमीर-गरीब की आय में बहुत अंतर है, केवल एक छोटा वर्ग ही देश की उच्च अर्थव्यवस्था के फल का लाभ उठा रहा है।
0 views • 2025-01-03
Sanjay Purohit
डॉ. मनमोहन सिंह: एक कालजयी राजनेता
निस्संदेह, विख्यात अर्थशास्त्री और एक कुशल प्रशासक डॉ. मनमोहन सिंह का अवसान देश-दुनिया के लिये एक दुखद क्षण है। आज के दौर में उन जैसा कुशाग्र बुद्धि का अर्थशास्त्री व सहज-सरल व्यक्ति होना दुर्लभ ही है।
0 views • 2024-12-28
Sanjay Purohit
नशे के खिलाफ कदम: वर्तमान समय की सख्त जरूरत
निश्चित रूप से किसी राज्य या देश की जवानी का नशे के सैलाब में डूबना राष्ट्रीय क्षति ही है। इसके लिये नशे की आपूर्ति रोकने से लेकर प्रयोग तक पर नियंत्रण की राष्ट्रव्यापी मुहिम की जरूरत है।
0 views • 2024-12-16