सागर जैसा मन, कभी ख़त्म नहीं होने वाली असीम इच्छाए
जो शांत है, उसके पास सुख है। और शांत वही रह सकता है, जिसका इंद्रियों और मन पर नियंत्रण है। जिसने इच्छाओं को अनुशासित कर रखा है, वह शांत है। जो शांत है वही परम सत्य को प्राप्त कर सकता है। जिसके पास बैठने मात्र से शांति की अनुभूति होती है, वह संत है।
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Sanjay Purohit
Created AT: 06 फरवरी 2025
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जीवन जीने के दो मार्ग हैं - एक भौतिकता और विलासिता का, और दूसरा आध्यात्मिकता का। एक मार्ग का परिणाम अशांति है और दूसरे का शांति। भौतिकता का मार्ग क्षणिक सुख और चिरकाल तक दुख देने वाला है। बहुत दुख और थोड़ा सुख देने वाला यह मार्ग आखिरकार अशांत ही बनाता है। भौतिकता की विलासिता में डूबा हुआ व्यक्ति अपने वर्तमान को भी खोता है और भविष्य को भी।

सागर जैसा मन, इसकी इच्छाएं कभी ख़त्म नहीं होंगी


जीवन जीने के दो मार्ग हैं - एक भौतिकता और विलासिता का, और दूसरा आध्यात्मिकता का। एक मार्ग का परिणाम अशांति है और दूसरे का शांति। भौतिकता का मार्ग क्षणिक सुख और चिरकाल तक दुख देने वाला है। बहुत दुख और थोड़ा सुख देने वाला यह मार्ग आखिरकार अशांत ही बनाता है। भौतिकता की विलासिता में डूबा हुआ व्यक्ति अपने वर्तमान को भी खोता है और भविष्य को भी।


आज का युग विज्ञापन का है। विज्ञापन के माध्यम से वस्तु को इतने आकर्षक तरीके से प्रस्तुत किया जाता है कि व्यक्ति न चाहते हुए भी मन के हाथों मजबूर हो जाता है। पदार्थ जगत व्यक्ति को प्रभावित करता है, क्योंकि उसका परिणाम उसे सरस लगता है। पदार्थ व्यक्ति की आवश्यकता है, इसे गौण नहीं कर सकते। लेकिन, पदार्थ की आवश्यकता जब इच्छा में बदल जाती है, तब समस्या बन जाती है। कहा जाता है कि इच्छा आकाश के समान अनंत है। एक इच्छा पूर्ण होती नहीं कि दूसरी सामने आ खड़ी होती है।


इच्छाओं की पूर्ति संभव नहीं है, सीमित आवश्यकता की पूर्ति तो फिर भी संभव है। असीमित इच्छाओं ने तनाव पैदा किया, रोग उत्पन्न किए हैं। भौतिकता ने इच्छाओं को, महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाने का काम किया है। निरंतर चाही जाने वाली वस्तुओं की पूर्ति क्या संभव है? व्यक्ति इस बात को भलीभांति जानता है, फिर भी मन की अनियंत्रित इच्छा उसे शांत नहीं रहने देती। ईंधन से अग्नि कभी तृप्त नहीं होती, नदियों के पानी से सागर तृप्त नहीं होता, वैसे ही इच्छाओं की पूर्ति से मन भी तृप्त नहीं होता।


शांति की चाह रखने वालों को वास्तविक सत्य स्वीकार करना होगा। अध्यात्म ही शांति के लिए सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। अध्यात्म की शरण ही शांति दे सकती है। अध्यात्म का मार्ग आत्मानुशासन का मार्ग है। अध्यात्म का मार्ग विवेक का मार्ग है। अध्यात्म के रास्ते पर चलने वाला व्यक्ति संतुलन का जीवन जीता है। वह अपने विवेक बुद्धि को जागृत रखता है। विवेक के उत्पन्न होने पर हीशांति का उदय होता है। इसलिए वह अपने करणीय और अकरणीय कार्य को सोच समझकर संपादित करता है। एक आध्यात्मिक व्यक्ति इच्छाओं पर नियंत्रण करना जानता है। इसलिए वह शांत रहता है। जीवन में संतुलन होना चाहिए, तभी व्यक्ति शांति पूर्वक जी सकता है। केवल भौतिकता, पदार्थ, इच्छा, महत्वाकांक्षा न मुक्ति दे सकती है और न शांति। उसे अपने जीवन में अध्यात्म, संयम, त्याग और व्रत को स्थान देना होगा।

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