


हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मंच पर जो तस्वीर उभरी, उसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा। जब मंच पर सिर्फ तीन देश—भारत, चीन और रूस—के शीर्ष नेता मौजूद थे, तो दरअसल यह महज़ तीन राष्ट्रों की मौजूदगी नहीं थी, बल्कि वैश्विक जनसंख्या और संसाधनों का लगभग 40% हिस्सा एक साथ खड़ा था। यही कारण है कि इस क्षण को शक्ति संतुलन के लिहाज़ से ऐतिहासिक और निर्णायक माना जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का एक मंच पर आना अपने आप में इस बात का संकेत है कि वैश्विक राजनीति का केंद्र धीरे-धीरे बदल रहा है। इस त्रिकोणीय साझेदारी में जहां भारत की लोकतांत्रिक शक्ति और तकनीकी प्रगति है, वहीं रूस की ऊर्जा क्षमता और चीन की आर्थिक ताकत इसे और अधिक प्रभावी बनाती है। यही गठजोड़ कई पश्चिमी देशों, ख़ासकर अमेरिका, के लिए असहज स्थिति पैदा करता है।
अमेरिकी राजनीति में पहले से ही चुनावी और कूटनीतिक दबाव झेल रहे डोनाल्ड ट्रंप के लिए यह तस्वीर और भी चुनौतीपूर्ण है। उन्हें लगता है कि यदि यह साझेदारी और गहरी होती है, तो अमेरिका की वैश्विक पकड़ कमजोर हो सकती है। इसीलिए वॉशिंगटन से लेकर व्हाइट हाउस तक इस मुलाकात को गहरी नज़रों से देखा जा रहा है। स्पष्ट है कि आने वाले समय में RIC केवल सहयोग का मंच नहीं रहेगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समीकरणों को नया आकार देने वाला केंद्र बिंदु बन सकता है।